ये जो देस है मेरा।
The Wisdom Project Hindi
ये जो देस है मेरा।
आप ख़ास हैं, बहुत ख़ास।
कहा जाता है कि हर इंसान उन पांच इंसानो का औसत होता है जिनके साथ वो सबसे ज्यादा समय बिताता है।
यानी, आपका व्यक्तित्व आपके आसपास के 5 लोगों से निर्धारित होता है। अब इस हिसाब से आप खास भी हैं और आम भी।
पर ये बात काफी पुरानी हो गयी।
आज के समय में ये कहना गलत नहीं होगा कि हर इंसान उन 5 Apps का औसत है जिनके साथ वो सबसे ज्यादा समय बिताता है, आखिर आजकल हम इंसानो के साथ कितना ही समय बिताते हैं, तो इस कहावत को upgrade करना भी ज़रूरी है।
तो आप ख़ास हैं या आम ये इस बात पर निर्भर करता है कि आप अपना समय कहाँ बिता रहे हैं, अपने फ़ोन पर आप क्या देख रहे हैं, पढ़ रहे हैं, forward कर रहे हैं, क्या सुन रहे हैं और किन लोगों से बात कर रहे हैं, हर चीज़ आपके व्यक्तित्व पर असर करती है, कुछ अच्छे असर और कुछ बुरे असर, बहुत बुरे असर।
दुनिया में हर चीज़ की कीमत होती है, जब कोई चीज़ निशुल्क होती है, तो अक्सर उसकी कीमत सबसे ज्यादा होती है। निशुल्क चीज़ों की कीमत आप अपने सबसे महत्त्वपूर्ण कोष से चुकाते हैं - अपने समय से।
आपका समय, आपका ध्यान, बेशकीमती है, और आज जो भी आपको कोई चीज़ अगर निशुल्क दे रहा है तो वो आपका ध्यान और समय बदले में आपसे छीन रहा है है।
अब चाहे वो फेसबुक हो, गूगल हो, यूट्यूब हो या ट्विटर हो। यहाँ तक की आपकी पसंदीदा मोबाइल कंपनी ही क्यों न हो, जिसने मोबाइल डाटा फ्री करके इस देश में डिजिटल क्रांति लायी है।
खैर, आप ख़ास हैं, आप समझदार हैं, आप अपना भला बुरा समझते हैं, आपके लिए ये बातें कोई नई नहीं हैं। फिर भी हमने सोचा आपको याद दिला दें।
हमारा उद्देश्य है कि लोग अपने समय का सदुपयोग करें, खास कर अपने ऑनलाइन समय का, सोशल मीडिया पर दिन भर में कई घंटो बिता देना बहुत आसान है, आप एक app खोलेंगे, कुछ पोस्ट्स देखेंगे, फिर कोई पोस्ट किसी और App पर ले जायेगी, फिर वहाँ कुछ और देखना शुरू कर देंगे, कुछ देर बाद किसी तीसरी app से कोई और Notification और आप वहाँ चल देंगे, धीरे धीरे आपको पता भी नहीं चलेगा और आपका पूरा दिन निकल जाएगा।
और इतना समय खर्च करने के बावजूद आपको एक खालीपन सा महसूस होगा, न तो आपने कुछ नया सीखा होगा, न नए विचारों को सुना, देखा होगा, न आपने अपने प्रिय लोगों के साथ कोई गहरा संवाद किया होगा।
बस ऐसे ही दिन निकल गया।
The Wisdom Project पर हमारा उद्देश्य ये नहीं कि लोग अपना फ़ोन का या निशुल्क इंटरनेट का इस्तेमाल न करें। बिलकुल करें, पर इन साधनों का सदुपयोग करें जिससे आपके जीवन में उन्नति हो, विकास हो।
हमारे अंग्रेजी पाठकों के लिए हम हर रविवार एक पत्र भेजते हैं, उनके Email-ID पर, जिसमें हम किसी एक विषय पर अलग अलग आर्टिकल, वीडियो, पॉडकास्ट व् किताबें शेयर करते हैं, और उन पर अपने कुछ विचार भी व्यक्त करते हैं। यह वो विषय होते हैं जो हमें लगते हैं हम सबके जीवन में बहुत ज़रूरी हैं, और इन विषयों पर हम सब और अच्छी तरह कैसे सोच सकते हैं, कैसे ज्ञान पा सकते हैंऔर उससे अमल में ला सकते हैं, बस ये हमारा उद्देश्य होता है।
एक विषय जो शायद हम सबके दिल के सबसे करीब है, और जिसके बारे में हमारी सोच बेहतर होना सबसे ज़रूरी है वो है हमारा देश, हमारा देश भारत।
आजकल लगता है हमारे सार्वजनिक संवाद का स्तर कुछ गिर सा गया है।
हमारी ऑनलाइन चौपालें निहायत ही असंगत मुद्दों पर बिना बात बात बँट जाया करतीं हैं , और जो वाकई काम के मुद्दे होते हैं उनका कोई ज़िक्र भी नहीं होता।
ये सार्वजनिक संवाद का खोखलापन भी एक निःशुल्क सेवा का ही उत्पाद है -- निशुल्क चलने वाले चौबीस घंटे के मनोहर चैनल, जो अपने आप को न्यूज़ चैनल भी कहते हैं।
सत्य तो ये है की इस निशुल्क इंटरनेट की डिजिटल क्रांति के बाद आपके ध्यान का बाज़ार लगा हुआ है, और इसमें पैसे वही कमा सकता है जो आपके ध्यान को और आपके समय को बटोरके advertisement दिखाने वालो को बेच सकें। और इस कार्य में हमारे चोबीस घंटे वाले चैनल सबसे आगे हैं। चाहे वो टीवी पर हो या उनकी sites पर या youtube पर।
वैसे अपना शौक है, मनोहर कहानियां पढ़ने में कोई बुराई नहीं है, और न ही इन चैनलों को देखने में, समस्या तब आ जाती है जब हम वाकई ज़रूरी मुद्दों पर भी बहल जाते हैं, और पहले से निर्धारित टीमों में बंट जाते हैं, शायद ही कभी ऐसा हुआ है कि किसी मुद्दे पर आपने अपनी सोच बदली हो, और अपने से उलटी सोच रखने वाले का साथ दिया हो।
ज़रा सोचिये ।
हम बंट जाते हैं हिन्दू मुसलमान में, वाम पंथी दक्षिण पंथी में, लिबरल और भक्त में, भाजपाई और कोंग्रेसी में।
सत्य तो ये है कि हम इनमे से कुछ भी नहीं हैं, और सब कुछ हैं।
हमारी सबसे बड़ी और सबसे महत्वपूर्ण पहचान है कि हम भारतीय हैं, और बाकी सब इसके बाद में हैं।
हम तो यहाँ तक कहेंगे कि हम अपनी बाकी सारी पहचानें हर मुद्दे पे बदल सकते हैं, पर भारतीयता एक ऐसी पहचान है जो शायद कभी नहीं बदल सकते।
यह बेहद दुःखद है कि इस सबसे महत्त्वपूर्ण पहचान को हम काफी कम समझते हैं। और हमारे विचार कुछ चुनिंदा लीडरों से उधार लिए हुए होते हैं, अपने खुद के नहीं।
क्या आप अपने घर के अंदर के मुद्दों पर किसी एक लीडर की अंध भक्ति करते हैं? शायद नहीं, और करनी भी नहीं चाहिए।
इसी तरह अपने देश से जुड़े किसी भी मुद्दे पर भी आपको किसी एक लीडर पर अंध विश्वास नहीं करना चाहिए, बल्कि ज्यादा से ज्यादा जानकारी लेकर अपने विचार खुद बनाने चाहिए, अपनी सोच खुद बनानी चाहिए। आखिर, आप बहुत ख़ास हैं।
बस ये ही है हमारा उद्देश्य।
कि ज़्यादा से ज़्यादा लोग अपनी खुद की सोच बनाना सीखें, खुद विचार करना सीखें, भेड़ की तरह किसी चरवाहे के पीछे न दौड़ें , अपना विवेक खुद बनाएं, और इसके लिए अपने पास उपलब्ध सभी साधनों का पूरा उपयोग करें। फ्री apps और इंटरनेट का भी।
इसी उद्देश्य से हम आज एक नयी मुहीम शुरू कर रहे हैं -- ये जो देस है मेरा।
इसके तहत हम हर हफ्ते, शनिवार को, भारत से जुड़े किसी एक मुद्दे पर एक दृष्टिकोण प्रस्तुत करेंगे, वह कोई वीडियो हो सकता है, कोई लेख, कोई पॉडकास्ट , कोई किताब या कोई फिल्म।
हमारी कोशिश रहेगी कि जो भी हम शेयर करें उससे भारत के बारे में हमारी और हमारे पाठकों कि सोच थोड़ी खुले, नए विचार उजागर हों, और हम अपनी समस्याओं को बेहतर ढंग से समझ पाएं। हम फालतू की पॉलिटिक्स से दूर रहना चाहेंगे, और उन मुद्दों से भी दूर रहना चाहेंगे जो चौबीस घंटों वाले चैनलों पर चल रहे हों। पर अगर कोई मुद्दा वाकई बहुत महत्त्वपूर्ण है तो हम उससे दूर नहीं भागेंगे।
बुद्धि का अर्थ केवल ज्ञान नहीं होता।
अपनी बुद्धि अपग्रेड करना हम सबकी अपनी अपनी ज़िम्मेदारी है, ये काम बाहर से किसी से ज्ञान डाउनलोड कर देने से नहीं होगा, इसके लिए हमें खुद ज्ञान बटोरना होगा और उस ज्ञान पर मनन करना होगा, उस पर विचार करना होगा, चिंतन करना होगा, और फिर एक मत बनाना होगा, तब बुद्धिमत्ता आएगी, तब विवेक आएगा।
और विवेक से ही विकास आएगा।
तो हमारी एक ही विनती है, की हम जो भी शेयर करें, आप उस पर खुद ज़रूर मनन करें और अपने खुदके विचार बनाने की कोशिश करें। फेसबुक पर हलके like करना तो बहुत आसान है पर उससे आपका कोई भला नहीं होगा। और अगर आपको कुछ पसंद न आये तो दो बुरे शब्द बोलना भी बहुत आसान है, पर उससे भी आपका कोई फायदा नहीं होगा।
आखिर हलाहल तो आसानी से निकल ही जाता है, वो तो अमृत जिसके लिए गहरा मंथन करना पड़ता है।
ज़रा सोचिये ।
जय हिन्द ।
ये जो देस है मेरा -- संस्करण 1
आज काफी समय ले लिया आपका, और समय नहीं लेंगे।
आज स्वतंत्रता दिवस है, आज के दिन 1947 के साल को याद करना बहुत ज़रूरी है।
थोड़ा समय निकालिये और तमस देखिये।
भीषम साहनी के उपन्यास पर आधारित ये 80 के दशक का धारावाहिक यूट्यूब पर उपलब्ध है। बेहतरीन अदाकारी, लेखन और पटकथा, कई अवार्ड भी जीते हैं। पर सबसे ज़रूरी ये है की ये कहानी आज़ादी के समय के भारत का वो दृश्य प्रस्तुत करती है जो शायद आपको और कहीं नहीं मिलेगा, और जो शायद किसी और दृश्य से कई ज्यादा भयावय और सच्चा भी है।
जिन सांप्रदायिक लड़ाइयों में हम आज फंसे हुए से रहते हैं, 1947 में भी हमारे पूर्वज इन्ही में फँसे हुए थे , या शायद इससे भी कई बदतर। गौर करने वाली बात ये है की अगर हम आज भी उन्ही समस्याओं में फँसे हुए हैं तो पिछले 73 वर्षों में हमने किया क्या है।
देखिये, सोचिये, समझिये --

