"मरते हम भी है मरते तुम भी, तुम मेहेंगा खरीद कर मरते हो , हम सस्ता बेच कर मरते है "
-शरद जोशी
हमनें अक्सर ख़बरों में देखा है कि किसान विरोध प्रदर्शन करते हुए अपनी फसल सड़कों पर फेंक देते हैं। आप और हम ये सोचते है कि इससे तो किसी गरीब में बाँट देते। हम कभी समझ ही नहीं सकते कि कितना मजबूर होगा वो किसान जो अपनी मेहनत की उपज को ऐसे फेंकता होगा।
कहने को हम कृषि प्रधान देश हैं लेकिन गौर से समीक्षा करने पर पता चलता है हमारी अधिकाँश नीतियाँ किसान विरोधी है। हमारे कृषि सुधार के उपाय सिर्फ लोन माफ़ी या न्यूनतम समर्थन मूल्य तक ही की सीमित रह जाते है।
दुनिया में टेक्नोलॉजी ने इतनी प्रगति की है, किसान का जीवन आसान करने के लिए किस टेक्नोलॉजी का उपयोग हुआ है?
हम मानते है कि हमारे किसान अनपढ़ है और और आगे बढ़ने की उनमें कोई लालसा नहीं है।
जबकि वास्तविकता यह है कि हमारी सरकारी नीतियाँ कदम कदम पर उनके लिए समस्याएं उत्पन्न करती है।
जो नियम किसी अन्य प्रोफेशन में मूर्खता कहलायेंगे वैसे सारे नियमों से हमारा कृषि जगत पीड़ित है।
एक आम भारतीय के दिमाग में एक ओर किसान की छवि गरीब दीन हीन व्यक्ति की है और दूसरी ओर किसान नेता की छवि सफ़ेद कपड़ों में किसी दबंग व्यक्ति की है।
आज यह देस है मेरा सीरीज़ में हम जानेंगें हमारे किसान के बारे में - बिल्कुल ज़मीनी स्तर पर - उनके एक ऐसे नेता से जो कि एक इंजीनियर भी है।
Seen and the Unseen की इस पॉडकास्ट में अमित वर्मा बात कर रहे है किसान नेता गुणवंत पाटिल से - किसान की समस्या, उनके मूल कारण और संभावित उपाय -
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The Seen and The Unseen चैनल पर यह इंटरव्यू अपवाद है - क्यूंकि यह हिंदी में है