
चलिए एक शर्त लगाते है - जीत और हार पर क्या होना चाहिए इसके लिए मैं आपको दो options देती हूँ -
Option 1 - अगर आप जीते तो मैं आपको Rs. 100/- दूंगी, और अगर आप हारे तो आपको मुझे Rs. 20/- देने होंगे ।
Option 2 - अगर आप जीते तो मैं आपको Rs 30/- दूंगी, और अगर आप हारे तो आप मुझे कुछ भी नहीं देना होगा ।
आप इनमें से कौन सा option लेंगे?
ज़रा सोचिये !
रिसर्च के अनुसार अधिकाँश लोग Option 2 लेंगे - क्यूंकि उसमें फायदा भले ही ज्यादा न हो पर नुकसान बिलकुल नहीं है।
हम इंसान, जितना फायदे से खुश नहीं होते, उससे कई ज्यादा दुःखी, उतनी ही मात्रा में हुए नुक्सान से होते है।
आप अपनी मासिक आय को ही ले लीजिये - उसके मिलने सेआपको कितनी ख़ुशी मिलती है, और उतना ही अगर आपका नुक्सान हो जाए तो आपको कितना दुःख होगा। फायदे और नुकसान दोनों की ही मात्रा बराबर है - पर हमें नुकसान कई गुना ज्यादा चुभता है।
इसको कहते है - Loss Aversion Bias
एक और उदाहरण से इसे समझते है - आपकी अलमारी में ऐसे कई कपड़े, जूते और ऐसी अन्य कई चीज़ें होंगी जो आपने शायद ही इस्तेमाल की हो।आज अगर कोई आपसे वो ही चीज़ें किसी को देने के लिए कह दे, तो आपके लिए उनको छोड़ पाना आसान नहीं होगा।
इस्तेमाल न करने के बावजूद, हमें उनको दे देना अपना नुकसान लगता है। और नुकसान का भय, फायदे की ख़ुशी से कई अधिक होता है।
ऐसे मिलते जुलते कई और डर है हमारे मन में। हम कई निर्णय किसी फायदे की अपेक्षा से ज्यादा, नुकसान से बचने के लिए करते है।
इनमें एक ऐसा ही डर है - हमारे किसी से पीछे रह जाने का डर।
दिन भर न्यूज़ देखकर क्या फायदा है हम नहीं जानते, नहीं सोचते - पर हमें न्यूज़ न देखने के नुक़सान ज़रूर पता है। हम किसी चर्चा में हमारे मूल्यवान विचारों का योगदान नहीं कर पाएंगे - ये तो बहुत बड़ा नुक्सान हो जाएगा।
इससे बचने के लिए हम सारे जतन करते है - हर कुछ मिनटों में फेसबुक पे ऊँगली चला लेते है , न्यूज़ चैनल बदल लेते है।
क्यूंकि नुकसान का भय, फायदे की ख़ुशी से कई अधिक होता है।
अगली बार जब आप कोई advertisement देखें जिसमें लिखा हो - “आखिरी मौका” , “Last Chance” , “Now or never” , “Once in a lifetime opportunity”, “Offer ending soon”तो समझ जाइएगा कि ये आपके दिमाग के Loss aversion Bias का फायदा उठा रहे है।
वो offer लेना है या नहीं , आपके लिए उचित है या नहीं - ये आपको स्वयं सोचना है।
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